शिवपुराण से (रूद्र संहिता तृतीय पार्वती खण्ड) (505) गतांक से आगे......

तारकासुर के सताये हुए देवताओं का ब्रह्माजी को अपनी कष्टकथा सुनाना, ब्रह्माजी का उन्हें पार्वती के साथ शिव के विवाह के उद्योग करने का आदेश देना, ब्रह्माजी के समझाने से तारकासुर का स्वर्ग को छोड़ना और देवताओं का वहां रहकर लक्ष्यसिद्धि के लिए यत्नशील होना 

मैं उस दैत्य के स्थान पर जाकर तारकासुर को बुरे हठ से हटाने की चेष्टा करूंगा। अतः अब तुम लोग अपने स्थान को जाओ। 

नारद! देवताओं से ऐसा कहकर मैं शीघ्र ही तारकासुर से मिला और बड़े प्रेम से बुलाकर मैंने उससे इस प्रकार कहा- तारक! यह स्वर्ग हमारे तेज का सारतत्व है। परन्तु तुम यहां के राज्य का पालन कर रहे हो। जिसके लिए तुमने उत्तम तपस्या की थी, उससे अधिक चाहने लगे हो। मैंने तुम्हें इससे छोटी ही वर दिया था। स्वर्ग का राज्य कदापि नहीं दिया था। इसलिए तुम स्वर्ग को छोड़कर पृथ्वी पर राज्य करो। असुरश्रेष्ठ! देवताओं के योग्य जितने भी कार्य हैं, वे सब तुम्हें वहीं सुलभ होंगे। इसमें अन्यथा विचार करने की आवश्यकता नहीं है। ऐसा कहकर उस असुर को समझाने के बाद मैं शिवा और शिव का स्मरण करके वहां से अदृश्य हो गया। तारकासुर भी स्वर्ग को छोड़कर पृथ्वी पर आ गया और शोणितपुर में रहकर वह राज्य करने लगा। फिर सब देवता भी मेरी बात सुनकर मुझे प्रणाम करके इन्द्र के साथ प्रसन्नतापूर्वक बड़ी सावधानी के साथ इन्द्रलोक आ गये। (शेष आगामी अंक में)

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