शिवपुराण से (रूद्र संहिता तृतीय पार्वती खण्ड) (504) गतांक से आगे......

तारकासुर के सताये हुए देवताओं का ब्रह्माजी को अपनी कष्टकथा सुनाना, ब्रह्माजी का उन्हें पार्वती के साथ शिव के विवाह के उद्योग करने का आदेश देना, ब्रह्माजी के समझाने से तारकासुर का स्वर्ग को छोड़ना और देवताओं का वहां रहकर लक्ष्यसिद्धि के लिए यत्नशील होना 

यह बात तुम्हें भी विदित ही है। महादेवजी उस कन्या का पाणिग्रहण अवश्य ही करेंगे, तथापि देवताओं! तुम स्वयं भी इसके लिए प्रयत्न करो। तुम अपने यत्न से ऐसा उद्योग करो, जिससे मेनकाकुमारी पार्वती में भगवान् शंकर अपने वीर्य का आधान कर सकें। भगवान् शंकर ऊध्र्वरेता हैं (उनका वीर्य ऊपर की ओर उठा हुआ है) उनके वीर्य को प्रस्खलित करने में केवल पार्वती ही समर्थ है। दूसरी कोई अबला अपनी शक्ति से ऐसा नहीं कर सकती। गिरिराज की पुत्री वे पार्वती इस समय युवावस्था में प्रवेश कर चुकी है और हिमालय पर तपस्या में लगे हुए महादेवजी की प्रतिदिन सेवा करती है। अपनीे पिता हिमवान् के कहने से काली शिवा अपनी दो सखियों के साथ ध्यानपरायण परमेश्वर शिव की साग्रह सेवा करती हैं। तीनों लोकों में सबसे अधिक सुन्दरी पार्वती शिव के सामने रहकर प्रतिदिन उनकी पूजा करती हैं, तथापि वे ध्यानमग्न महेश्वर मन से भी ध्यानहीन स्थिति में नहीं आते। अर्थात ध्यानभंग करके पार्वती की ओर देखने का विचार भी मन में नहीं लाते। देवताओं! चन्द्रशेखर शिव जिस प्रकार काली को अपनी भार्या बनाने की इच्छा करें, वैसी चेष्टा तुम लोग शीघ्र ही प्रयत्नपूर्वक करो।                                    (शेष आगामी अंक में)

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