तारकासुर के सताये हुए देवताओं का ब्रह्माजी को अपनी कष्टकथा सुनाना, ब्रह्माजी का उन्हें पार्वती के साथ शिव के विवाह के उद्योग करने का आदेश देना, ब्रह्माजी के समझाने से तारकासुर का स्वर्ग को छोड़ना और देवताओं का वहां रहकर लक्ष्यसिद्धि के लिए यत्नशील होना
वह जितेन्द्रिय होकर अद्भुत ढंग से राज्य का संचालन करने लगा। उसने समस्त देवताओं को निकालकर उनकी जगह दैत्यों को स्थापित कर दिया और विद्याधर आदि देवयोनियों को स्वयं अपने कर्म में लगाया। मुने! तदनन्तर तारकासुर के सताये हुए इन्द्र आदि सम्पूर्ण देवता अत्यन्त व्याकुल और अनाथ होकर मेरी शरण में आये। उन सबने मुझ प्रजापति को प्रणाम करके बड़ी भक्ति से मेरा स्तवन किया और अपने दारूण दुख की बातें बताकर कहा- प्रभो! आप ही हमारी गति हैं। आप ही हमें कर्तव्य का उपदेश देने वाले हैं और आप ही हमारे धाता एवं उद्धारक हैं। हम सब देवता तारकासुर नामक अग्नि में जलकर अत्यन्त व्याकुल हो रहे हैं। जैसे संनिपात रोग में प्रबल औषधें भी निर्बल हो जाती हैं, उसी प्रकार उस असुर ने हमारे सभी क्रूर उपायों को बलहीन बना दिया है। भगवान् विष्णु के सुदर्शन चक्र पर ही हमारी विजय की आशा अवलम्बित रहती है, परन्तु वह भी उसके कण्ठ पर कुण्ठित हो गया। उसके गले में पड़कर वह ऐसा प्रतीत होने लगा था, मानों उस असुर को फूल की माला पहनायी गयी हो। मुने! देवताओं का यह कथन सुनकर मैंने उन सबसे समयोचित बात कही- (शेष आगामी अंक में)
