लोको संघति दिवस पर कालिका प्रसाद के गीतों से गूंजा सिलचर

मदन सुमित्रा सिंघल, शिलचर। महान लोक कलाकार स्वर्गीय कालिका प्रसाद भट्टाचार्य की भावपूर्ण धुनें गूंज उठीं, जब कछार जिला प्रशासन ने सूचना एवं जनसंपर्क, बराक घाटी क्षेत्र, सिलचर के क्षेत्रीय कार्यालय और सांस्कृतिक कार्य निदेशालय के सहयोग से डीडीआईपीआर के कार्यालय परिसर में लोको संघति दिवस ​​धूमधाम और भव्यता के साथ मनाया।

इस स्मरणोत्सव की शुरुआत डीडीआईपीआर कार्यालय के स्थिर लाउडस्पीकर सिस्टम के माध्यम से कालिका प्रसाद के अमर गीतों को बजाकर की गई, जिससे वातावरण उनकी लोक रचनाओं की विशिष्ट लय और प्रतिध्वनि से भर गया।  यह दिन इस धरती के उस महान सपूत की जयंती का प्रतीक है, जिनका जन्म 11 सितंबर 1970 को सिलचर में हुआ था। असम सरकार ने लोक संगीत और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में उनके अभूतपूर्व योगदान के सम्मान में इस दिन को औपचारिक रूप से लोको संघति दिवस ​​घोषित किया है।

दिवंगत कलाकार के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई और अधिकारियों, परिवार के सदस्यों और कलाकारों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए। सहायक आयुक्त एवं सांस्कृतिक मामलों की शाखा अधिकारी दीपा दास, अतिरिक्त मुख्य सचिव ने कालिका प्रसाद ने कहा कि कालिका प्रसाद भट्टाचार्य न केवल एक गायक थे, बल्कि एक सांस्कृतिक पथप्रदर्शक भी थे, जिन्होंने बंगाली लोकगीतों के सार को पुनर्जीवित किया और उन्हें एक नई पहचान दी। उन्होंने कहा कि उनका संगीत एक ऐसा सेतु था जिसने असम और बंगाल की परंपराओं को व्यापक दुनिया से जोड़ा और लोकगीतों को एकता और गौरव का माध्यम बनाया।

इस अवसर पर दिवंगत कलाकार के परिवार के सदस्य भी उपस्थित थे।  उनके बहनोई समर बिजॉय चक्रवर्ती ने कालिका प्रसाद के सिलचर से कोलकाता तक के सफ़र को याद किया, जहाँ उन्होंने एक प्रसिद्ध लोक कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाई। भावुक होकर चक्रवर्ती ने कहा कि कालिका ने अपना जीवन लोक परंपराओं के शोध और संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा कि अपनी मंडली 'दोहर' के साथ उन्होंने ग्रामीण गीतों के देहाती आकर्षण को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहुँचाया। बंगाली लोक संगीत को लोकप्रिय बनाने के उनके अथक प्रयास ने हमारी सांस्कृतिक पहचान को नई पहचान दी।

कार्यक्रम सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की एक श्रृंखला से समृद्ध हुआ। बराक घाटी के प्रसिद्ध कलाकारों ने कालिका प्रसाद के कालजयी गीतों की भावपूर्ण प्रस्तुतियाँ दीं, साथ ही पारंपरिक नृत्य भी प्रस्तुत किए गए। इस अवसर को और भी ख़ास बनाते हुए उनके चाचा शौमित्र शंकर चौधरी ने एक सुंदर नृत्य प्रस्तुति दी, जिसका दर्शकों ने गर्मजोशी से स्वागत किया।

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