शालिनी जैन, शिक्षावाहिनी समाचार पत्र
आज कुछ मन ने चाहा
जो बाते किस्से किसी से ना साझा कर पाया
उन बातों को मोती की लड़ की तरह पिरो कर
फिर मन को मन से ही
जो बाते किस्से किसी से ना साझा कर पाया
उन बातों को मोती की लड़ की तरह पिरो कर
फिर मन को मन से ही
साझा करने को जी चाहा
आज कुछ अच्छे बुरे पल
आज कुछ अच्छे बुरे पल
जो मानस पटल पे थे अंकित
फिर साझा कर पाया
कुछ सीप सी सामान थी बाते
कुछ अनकही कुछ धुंधली थी यादें
कुछ दर्द भी थे सिमटे
कुछ धूल के नीचे दबे कुछ थे हल्के
आज उन दर्द की दावा नहीं
फिर साझा कर पाया
कुछ सीप सी सामान थी बाते
कुछ अनकही कुछ धुंधली थी यादें
कुछ दर्द भी थे सिमटे
कुछ धूल के नीचे दबे कुछ थे हल्के
आज उन दर्द की दावा नहीं
उन दर्द के अहसास को जीने का जी चाहा
कुछ खनक सी थी कुछ थी शूल सी
कुछ खिलखिलाती कुछ बाबुल सी
आज कुछ मन ने चाहा
जो बाते किस्से किसी से ना साझा कर पाया
आज मन से मन कर पाया
कुछ खनक सी थी कुछ थी शूल सी
कुछ खिलखिलाती कुछ बाबुल सी
आज कुछ मन ने चाहा
जो बाते किस्से किसी से ना साझा कर पाया
आज मन से मन कर पाया