तारकासुर के सताये हुए देवताओं का ब्रह्माजी को अपनी कष्टकथा सुनाना, ब्रह्माजी का उन्हें पार्वती के साथ शिव के विवाह के उद्योग करने का आदेश देना, ब्रह्माजी के समझाने से तारकासुर का स्वर्ग को छोड़ना और देवताओं का वहां रहकर लक्ष्यसिद्धि के लिए यत्नशील होना
वहां जाकर परस्पर मिलकर आपस में सलाह करके वे सब देवता इन्द्र से प्रेमपूर्वक बोले-भगवन् शिव की शिवा में जैसे भी काममूलक रूचि हो, वैसा ब्रह्माजी का बताया हुआ सारा प्रयत्न आपको करना चाहिए। इस प्रकार देवराज इन्द्र से सम्पूर्ण वृतान्त निवेदन करके वे देवता प्रसन्नतापूर्वक सब ओर अपने-अपने स्थान पर चले गये। (अध्याय 14-16)
इन्द्र द्वारा काम का स्मरण, उसके साथ उनकी बातचीत तथा उनके कहने से काम का शिव को मोहने के लिए प्रस्थान
ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! देवताओं के चले जाने पर दुरात्मा तारक दैत्य से पीड़ित हुए इन्द्र ने कामदेव का स्मरण किया। कामदेव तत्काल वहां आ पहुंचा। तब इन्द्र ने मित्रता का धर्म बतलाते हुए काम से कहा- मित्र! कालवशात् मुझपर असाध्य दुःख आ पड़ा है। उसे तुम्हारे बिना कोई भी दूर नहीं कर सकता। दाता की परीक्षा दुर्भिक्ष में, शूरवीर की परीक्षा रणभूमि में, मित्र की परीक्षा आपत्तिकाल में तथा स्त्रियों के कुल की परीक्षा पति के असमर्थ हो जाने पर होती है। (शेष आगामी अंक में)
