गौरव सिंघल, देवबंद। बारात घर डांडी थामना रोड रणखण्डी में चल रही भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहा कि जिस मन को शिक्षित नहीं किया गया, आंतरिक अनुशासन का पाठ नहीं पढ़ाया गया, वह मन बड़े दुःख का कारण बन सकता है। उन्होंने कहा कि मन को थोड़ी सी भी छूट देना, हमारी तपस्या को विफल कर सकता है। उन्होंने कहा कि मन में असीमित ऊर्जा, शक्ति और सामर्थ्य है।उन्होंने कहा कि सत्य का पालन करना, मन को शांत करने और आत्मा को ईश्वर के निकट लाने की विधि है। उन्होंने कहा कि ध्यान और वैराग्य के माध्यम से मन को वश में किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सत्य बोलना, सत्य आचरण करना और सत्यनिष्ठ रहना, सफलता और सम्मान का मूल मंत्र है। उन्होंने कहा कि सत्य की ओर बढ़ने का अर्थ है अज्ञान को दूर करना और प्रकाश की ओर बढ़ना है। उन्होंने कहा कि सत्य का पालन करना, सरल, निष्कपट और राग-द्वेष से रहित होना, जीवन को दिव्य बनाने की दिशा में पहला कदम है।
उन्होंने कहा कि सत्यनिष्ठ आचरण से जीवन में श्रेष्ठता का उदय होता है। उन्होंने कहा कि सत्याचरण से शुभ कर्मों की ओर प्रवृत्ति होती है, जिससे जीवन आनंद और सौंदर्य से भर जाता है। उन्होंने कहा कि पहला पुरुषार्थ ही धर्म है। उन्होंने कहा कि धर्म को 'पहला पुरुषार्थ' कहा गया है, का अर्थ है जीवन के सही मार्ग पर चलना और नैतिक मूल्यों का पालन करना। उन्होंने कहा कि आपके प्रत्येक कर्म शुभकर्म बनें। शुभ कर्म ही जीवन का सच्चा मार्ग है।उन्होंने कहा कि जब हम शुभ कर्म करते हैं, तो हमारा जीवन आनंद और समृद्धि से भर जाता है। उन्होंने कहा कि शुभ कर्मों से समाज में सद्भाव और प्रेम बढ़ता है। उन्होंने कहा कि ज्ञान, विवेक और विचार का आश्रय लेकर किये गए शुभ कर्म निश्चित ही फलीभूत होते हैं। उन्होंने कहा कि असफलता के भय को त्याग कर अहर्निश पारमार्थिक कार्यों में संलग्न रहें। इस अवसर पर पूर्व कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा, पूर्व ब्लॉक प्रमुख ठाकुर अनिल पुंडीर, साहब सिंह राणा, सुधीर राणा, लखन प्रताप सिंह, राहुल राणा, सत्या राजपूत, साध्वी माँ देवेश्वरी एवं बड़ी संख्या में भक्तजन उपस्थित रहे।

