एक क्रांति, अनगिनत अवसर और समावेशी सपनों की उड़ान है डिजिटल भारत

डॉ. शैलेश शुक्ला, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
क्या आप जानते हैं कि भारत में हर मिनट 1,000 से अधिक लोग डिजिटल भुगतान कर रहे हैं और 2025 तक देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है? (स्रोत : नासकॉम, 2024) फिर भी, देश के 60% से अधिक ग्रामीण परिवारों के पास इंटरनेट की पहुंच नहीं है और हर दिन साइबर अपराधों के कारण लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है। (स्रोत : राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, 2024) यह विरोधाभास भारत की डिजिटल यात्रा की कहानी को न केवल रोचक बनाता है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि क्या हम वाकई एक समावेशी डिजिटल भारत की ओर बढ़ रहे हैं? डिजिटल इंडिया पहल ने पिछले एक दशक में भारत को तकनीकी रूप से सशक्त बनाने की दिशा में क्रांतिकारी कदम उठाए हैं, लेकिन इस दौड़ में कई चुनौतियाँ और अवसर साथ-साथ चल रहे हैं। यह संपादकीय भारत की डिजिटल प्रगति, उसकी बाधाओं और समावेशी विकास की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, ताकि हर भारतीय इस तकनीकी क्रांति का हिस्सा बन सके। आइए, इस यात्रा को समझें और यह जानें कि भारत कैसे एक डिजिटल महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है।
भारत की डिजिटल प्रगति की कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं है। 2015 में शुरू हुई डिजिटल इंडिया पहल ने देश में इंटरनेट की पहुंच को 20% से बढ़ाकर 2025 तक लगभग 55% तक पहुंचा दिया है। (स्रोत : ट्राई, 2025) यूपीआई जैसे डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म ने भारत को दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली कैशलेस अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनाया है। 2024 में यूपीआई लेनदेन की मात्रा 131 बिलियन से अधिक हो गई, जो वैश्विक स्तर पर एक रिकॉर्ड है। (स्रोत : एनपीसीआई, 2024) इसके अलावा, ऑनलाइन शिक्षा और टेलीमेडिसिन जैसे क्षेत्रों में तकनीक ने नई संभावनाएँ खोली हैं। उदाहरण के लिए, कोविड-19 महामारी के दौरान, जब स्कूल बंद थे, तब स्वयं और दीक्षा जैसे मंचों ने लाखों बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा प्रदान की। टेलीमेडिसिन ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाया, जिससे दूरदराज के मरीज विशेषज्ञ डॉक्टरों से परामर्श कर सके। स्टार्टअप्स की बात करें तो, भारत में 100 से अधिक यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स हैं, जो डिजिटल नवाचार का प्रतीक हैं। (स्रोत : हुरुन इंडिया, 2025) ये उपलब्धियाँ भारत की तकनीकी ताकत को दर्शाती हैं, लेकिन इस चमकती तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है, जो हमें गंभीरता से सोचने पर मजबूर करता है।
डिजिटल भारत की राह में सबसे बड़ी बाधा है डिजिटल डिवाइड। भारत में 1.4 अरब की आबादी में से लगभग 700 मिलियन लोग अभी भी इंटरनेट से वंचित हैं। (स्रोत : ट्राई, 2025) विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां 66% भारतीय रहते हैं, केवल 25% आबादी के पास नियमित इंटरनेट पहुंच है। यह असमानता न केवल तकनीकी पहुंच तक सीमित है, बल्कि डिजिटल साक्षरता की कमी भी एक बड़ी समस्या है। एक अध्ययन के अनुसार, भारत के 70% से अधिक वयस्कों को बुनियादी डिजिटल कौशल, जैसे ऑनलाइन फॉर्म भरना या सुरक्षित पासवर्ड बनाना, नहीं आता। (स्रोत : ऑक्सफैम इंडिया, 2024) इसके अलावा, साइबर सुरक्षा एक और गंभीर चुनौती है। 2024 में भारत में साइबर अपराधों की संख्या में 24% की वृद्धि हुई, जिसमें फिशिंग, डेटा चोरी और रैनसमवेयर हमले शामिल हैं। (स्रोत : एनसीआरबी, 2024) डेटा गोपनीयता भी एक चिंता का विषय है, क्योंकि कई भारतीयों को यह नहीं पता कि उनके डेटा का उपयोग कैसे हो रहा है। ये चुनौतियाँ न केवल डिजिटल प्रगति को धीमा करती हैं, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों को और पीछे धकेलती हैं।
इन समस्याओं का समाधान करने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करना होगा। भारत सरकार ने भारत नेट परियोजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, लेकिन इसकी गति धीमी रही है। 2025 तक केवल 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में से 1.8 लाख को ही हाई-स्पीड इंटरनेट से जोड़ा जा सका है। (स्रोत : भारत नेट, 2025) इसे और तेज करने के लिए निजी टेलीकॉम कंपनियों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना होगा। साथ ही, डिजिटल साक्षरता को स्कूलों और समुदायों में अनिवार्य करना चाहिए। उदाहरण के लिए, गुजरात और केरल जैसे राज्यों ने स्थानीय स्तर पर डिजिटल साक्षरता अभियान चलाए, जिनके परिणामस्वरूप ग्रामीण महिलाओं और बुजुर्गों में तकनीकी जागरूकता बढ़ी है। साइबर सुरक्षा के लिए, सरकार को मजबूत कानून और जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। 2023 में लागू डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए और प्रयास चाहिए। निजी कंपनियों को भी डेटा गोपनीयता के लिए जवाबदेह बनाना होगा, ताकि आम नागरिकों का भरोसा बढ़े।
डिजिटल भारत का भविष्य समावेशी विकास पर निर्भर करता है। यदि हम केवल शहरी क्षेत्रों और शिक्षित वर्ग पर ध्यान देंगे, तो डिजिटल डिवाइड और गहरा होगा। ग्रामीण भारत को डिजिटल क्रांति का हिस्सा बनाने के लिए स्थानीय भाषाओं में तकनीकी सामग्री और सेवाएँ उपलब्ध करानी होंगी। उदाहरण के लिए, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियाँ हिंदी, तमिल और बंगाली जैसी भाषाओं में डिजिटल उपकरण विकसित कर रही हैं, जो ग्रामीण उपयोगकर्ताओं के लिए उपयोगी हैं। साथ ही, छोटे शहरों और गाँवों में स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना होगा। सरकार की स्टार्टअप इंडिया पहल ने 80,000 से अधिक स्टार्टअप्स को समर्थन दिया है, लेकिन इनमें से केवल 15% ही ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। (स्रोत : स्टार्टअप इंडिया, 2025) ग्रामीण उद्यमियों को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष नीतियाँ और फंडिंग की आवश्यकता है। इसके अलावा, डिजिटल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को और सुलभ बनाना होगा, ताकि हर भारतीय तकनीक के लाभों का हिस्सा बन सके।
यह भी महत्वपूर्ण है कि डिजिटल भारत की दौड़ में हम अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को बनाए रखें। तकनीक का उपयोग केवल आर्थिक विकास के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक उत्थान के लिए भी होना चाहिए। उदाहरण के लिए, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करके पारंपरिक कला, हस्तशिल्प और स्थानीय उत्पादों को वैश्विक बाजार तक पहुंचाया जा सकता है। ओडिशा के हस्तशिल्पियों ने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से अपनी कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, जो एक प्रेरणादायक उदाहरण है। (स्रोत : द हिंदू, 2024) साथ ही, डिजिटल शिक्षा के माध्यम से बच्चों को उनकी स्थानीय भाषा और संस्कृति से जोड़ा जा सकता है। यह सुनिश्चित करना होगा कि तकनीक हमें एक-दूसरे से जोड़े, न कि हमें और अलग करे।
अंत में, डिजिटल भारत का सपना केवल तकनीकी प्रगति का नहीं, बल्कि हर भारतीय के सशक्तिकरण का सपना है। यह तभी संभव होगा जब हम डिजिटल डिवाइड को पाटें, साइबर सुरक्षा को मजबूत करें और समावेशी नीतियों को लागू करें। सरकार, निजी क्षेत्र और नागरिकों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा। भारत के पास एक डिजिटल महाशक्ति बनने की अपार संभावनाएँ हैं, लेकिन यह तभी साकार होगा जब हर नागरिक इस यात्रा में शामिल हो। आइए, हम सब मिलकर एक ऐसा डिजिटल भारत बनाएँ, जहाँ तकनीक केवल सुविधा नहीं, बल्कि समानता और अवसर का प्रतीक बने।

डॉशैलेश शुक्ला

वैश्विक प्रधान संपादक

सृजन संसार अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समूह

आशियाना, लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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