शि.वा.ब्यूरो, मुजफ्फरनगर। श्री राम कॉलेज के कृषि विभाग एवं बेसिक साइंस विभाग के द्वारा कृषि विज्ञानं केंद्र चित्तोड़ा के तत्वाधान में फसल अवशेष प्रबंधन के माध्यम से प्रदूषण नियंत्रण विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का सुभारम्भ कृषि वैज्ञानिक डॉ. यशपाल सिंह, प्राचार्य डॉ. प्रेरणा मित्तल, निदेशक अशोक कुमार, डीन अकेडमिक डॉ. विनीत शर्मा, डॉ. पूजा तोमर, विभागाध्यक्ष बेसिक साइंस एवं विभागाध्यक्ष कृषि विभाग, डॉ. मौ.नईम के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में मुख्य प्रवक्ता डॉ. रीना एवं डॉ.सौम्या रही। कार्यशाला में 300 से ज्यादा विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया। इस कार्यक्रम के पहले दिन विषय से सम्बंधित पोस्टर एवं निबंध प्रतियोगिता कराई गयी, जिसमे 150 विद्यार्थियों ने पोस्टर एवं निबंध के माध्यम से हिस्सा लिया। प्रतियोगिता में विजेता विद्यार्थियों को पुरस्कृत भी किया गया।
कार्यशाला के पहले दिन डॉ. यशपाल सिंह ने बताया की फसल अवशेष मैनेजमेंट में चावल, गेहूं, मक्का वगैरह जैसी फसलों की कटाई के बाद बचे हुए पौधों के सामान (पराली, डंठल, पत्ते) को ध्यान से संभालना और इस्तेमाल करना शामिल है। उन्होंने बताया कि सही मैनेजमेंट में अवशेषों को मिलाना, मल्चिंग करना, जलाना, या खाद और बायोएनर्जी के लिए अवशेषों का इस्तेमाल करना शामिल हो सकता है। उन्होंने बताया कि फसल जलाने से होने वाले एयर पॉल्यूशन को रोकता है ओर फसल अवशेष जलाने से बड़ी मात्रा में पार्टिकुलेट मैटर, कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन और दूसरे पॉल्यूटेंट एटमॉस्फियर में निकलते हैं, जिससे स्मॉग, सांस की दिक्कतें और क्लाइमेट चेंज होता है। उन्होंने बताया कि अवशेषों को मिट्टी में मिलाकर या दूसरे इस्तेमाल करके मैनेज करने से खुले में जलाने की घटनाएं कम होती हैं या खत्म हो जाती हैं। उन्होंने बताया कि मिट्टी और पानी का प्रदूषण कम करता है एवं सही अवशेष मैनेजमेंट एग्रोकेमिकल्स और न्यूट्रिएंट्स के बहाव को कम करता है, जिससे पानी का प्रदूषण रुकता है। उन्होंने बताया कि अवशेषों को मिलाने से मिट्टी की बनावट बेहतर होती है, मिट्टी का कटाव कम होता है, और पानी जमा रहता है।डॉ. रीना ने बताया की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाता है तथा अवशेष ऑर्गेनिक मैटर की तरह काम करते हैं, मिट्टी के न्यूट्रिएंट्स को बढ़ाते हैं और केमिकल फर्टिलाइज़र की ज़रूरत को कम करते हैं, जिससे प्रदूषण हो सकता है। उन्होंने बताया कि फसल के अवशेष मैनेजमेंट के तरीके इन-सीटू इनकॉर्पाेरेशन एवं अवशेषों को मिट्टी में जोतकर नैचुरली गलने के लिए। डॉ. सौम्या ने बताया की फसल अवशेष मैनेजमेंट के ज़रिए प्रदूषण कंट्रोल में कटाई के बाद बचे हुए फसल अवशेषों से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के तरीके अपनाना शामिल है। उन्होंने बताया कि अगर इन अवशेषों का सही तरीके से मैनेजमेंट न किया जाए, तो ये हवा के प्रदूषण, पानी के खराब होने और मिट्टी के खराब होने में योगदान दे सकते हैं। उन्होंने बताया कि प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए फसल अवशेष मैनेजमेंट के कुछ खास तरीके यहां दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि प्रदूषण कंट्रोल के लिए फसल अवशेष मैनेजमेंट बहुत ज़रूरी है। उन्होंने बताया कि इसके लिए टेक्नोलॉजी के तरीकों, पॉलिसी सपोर्ट और किसानों को जानकारी देने की ज़रूरत होती है, ताकि टिकाऊ खेती और पर्यावरण की सेहत को बढ़ावा दिया जा सके।



